एनबीडी मुंबई,
महाराष्ट्र ने देश में एक नई मिसाल कायम करते हुए तीन भाषा नीति (Three Language Policy) को औपचारिक रूप से लागू कर दिया है। इस निर्णय के साथ महाराष्ट्र भारत का पहला राज्य बन गया है जहाँ सभी स्कूलों में मराठी, हिंदी और अंग्रेज़ी—इन तीनों भाषाओं को पढ़ाना अब अनिवार्य होगा। यह ऐतिहासिक फैसला राज्य सरकार द्वारा शिक्षा में समावेशिता, भाषा-संतुलन और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा और दूरदर्शी कदम माना जा रहा है।
नीति का उद्देश्य:
तीन भाषा नीति का मुख्य उद्देश्य छात्रों को उनकी मातृभाषा मराठी में सांस्कृतिक जड़ों से जोड़े रखना, राज भाषा हिंदी के माध्यम से राष्ट्रीय संवाद और एकता को प्रोत्साहन देना और अंग्रेज़ी के जरिए वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना है।
मुख्य विशेषताएं:
नीति कक्षा 1 से 10 तक के सभी शैक्षणिक संस्थानों पर लागू होगी। मराठी भाषा का अध्ययन सभी बोर्ड (राज्य, CBSE, ICSE आदि) के लिए अनिवार्य रहेगा। हिंदी और अंग्रेज़ी का समावेश छात्रों को भाषायी दृष्टि से संतुलित और सक्षम बनाएगा। मातृभाषा को महत्व देते हुए, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संवाद की क्षमता को भी बढ़ाया जाएगा।
देवेंद्र फडणवीस का बयान:
राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, “तीन भाषा नीति केवल एक शैक्षणिक फैसला नहीं, बल्कि यह महाराष्ट्र की विविध सांस्कृतिक और भाषायी विरासत को सम्मान देने का माध्यम है। यह नीति छात्रों को बहुभाषी बनाकर उन्हें भविष्य की चुनौतियों के लिए बेहतर तैयार करेगी।”
समाज और शिक्षा क्षेत्र में स्वागत:
शिक्षाविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अभिभावकों ने इस नीति का व्यापक स्वागत किया है। इसे एक ऐसा फैसला बताया गया है जो राज्य के विद्यार्थियों को सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़े रखते हुए आधुनिकता की ओर अग्रसर करेगा।
निष्कर्ष:
तीन भाषा नीति लागू कर महाराष्ट्र ने न केवल भाषा-संतुलन का आदर्श प्रस्तुत किया है, बल्कि यह देश के अन्य राज्यों के लिए भी एक प्रेरणास्पद मॉडल बन सकता है। यह नीति आने वाले वर्षों में महाराष्ट्र की शैक्षणिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को और अधिक सशक्त बनाएगी।
यह सिर्फ नीति नहीं, यह भविष्य का निर्माण है — एक ऐसा भविष्य जो भाषाओं को जोड़कर दिलों को जोड़े।