नेपाल में हिन्दू राष्ट्र की बढ़ती मांग
नेपाल में हिन्दू राष्ट्र की मांग हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ रही है। नेपाल को फिर से हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की मांग को लेकर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन और रैलियां आयोजित की जा रही हैं। यह आंदोलन नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों के लिए चिंता का विषय बन गया है। प्रधानमंत्री पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचंड’ और पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली सहित कई कम्युनिस्ट नेता इस राष्ट्रवादी भावना के पीछे बाहरी शक्तियों के हाथ होने की आशंका जता रहे हैं।
नेपाल की धर्मनिरपेक्षता बनाम हिन्दू राष्ट्रवाद
नेपाल 2008 तक आधिकारिक रूप से एक हिन्दू राष्ट्र था, लेकिन राजशाही के खात्मे के बाद इसे एक धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) राज्य घोषित कर दिया गया। हालांकि, देश का एक बड़ा तबका अब भी नेपाल को हिन्दू राष्ट्र बनाए जाने के समर्थन में है। हाल के वर्षों में यह मांग और अधिक मजबूत हुई है, जिसमें धार्मिक संगठनों, राजनीतिक समूहों और प्रवासी नेपाली समुदाय का सक्रिय योगदान देखा जा रहा है। नेपाल के विभिन्न शहरों में हजारों लोग सड़कों पर उतरकर हिन्दू राष्ट्र की बहाली की मांग कर रहे हैं। प्रमुख हिन्दू धर्मगुरु और राजनीतिक नेता इस अभियान का समर्थन कर रहे हैं। सोशल मीडिया कैंपेन और ऑनलाइन पेटिशन के माध्यम से इस आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन मिल रहा है।
कम्युनिस्ट पार्टियों का विरोध और उनकी दलीलें
नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियां, विशेष रूप से सीपीएन (माओवादी सेंटर) और सीपीएन (यूएमएल), हिन्दू राष्ट्र की मांग का कड़ा विरोध कर रही हैं। उनका मानना है कि नेपाल की धर्मनिरपेक्ष पहचान को बनाए रखना आवश्यक है ताकि देश में धार्मिक और जातीय सौहार्द बना रहे। प्रधानमंत्री प्रचंड का कहना है कि नेपाल को हिन्दू राष्ट्र बनाने की कोशिश राजनीतिक रूप से प्रेरित है और इससे समाज में तनाव बढ़ सकता है। के.पी. शर्मा ओली ने धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए आगाह किया है कि बाहरी शक्तियां नेपाल की धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करने का प्रयास कर रही हैं।
क्या नेपाल में बाहरी शक्तियों का दखल है?
कम्युनिस्ट नेताओं ने इस आंदोलन के पीछे विदेशी हस्तक्षेप की संभावना जताई है। कुछ नेताओं का मानना है कि भारत के हिन्दू राष्ट्रवादी समूह इस आंदोलन को बढ़ावा दे रहे हैं। कम्युनिस्ट पार्टियों ने प्रवासी नेपाली समुदाय के कुछ वर्गों पर इन प्रदर्शनों को आर्थिक रूप से समर्थन देने का आरोप लगाया है। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय धार्मिक संगठन नेपाल को हिन्दू राष्ट्र बनाने की विचारधारा को प्रचारित कर रहे हैं। नेपाल के पड़ोसी देशों में भी इस मुद्दे पर बारीकी से नज़र रखी जा रही है।
नेपाल की राजनीति पर असर और संभावित परिणाम
नेपाल में बढ़ता हिन्दू राष्ट्रवाद केवल कम्युनिस्ट पार्टियों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश की राजनीतिक स्थिरता के लिए चुनौती बन रहा है। धर्मनिरपेक्षता और हिन्दू राष्ट्रवाद के बीच बढ़ती खाई से निम्नलिखित संभावित परिणाम हो सकते हैं:
- राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ते विरोध प्रदर्शन।
- धार्मिक समुदायों के बीच तनाव।
- संविधान में संभावित संशोधन, यदि राजनीतिक दबाव बढ़ता है।
- आगामी चुनावों में इस मुद्दे का महत्वपूर्ण प्रभाव, जिससे पार्टियों को स्पष्ट रुख अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।
- नेपाल में विदेशी संबंधों पर असर, खासकर भारत और चीन के साथ।
नेपाल का भविष्य – धर्मनिरपेक्षता या हिन्दू राष्ट्र?
नेपाल इस समय एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है, जहां एक बड़ा वर्ग हिन्दू राष्ट्र की पुनर्स्थापना का समर्थन कर रहा है, जबकि कम्युनिस्ट पार्टियां धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं। नेपाल की पहचान हिन्दू राष्ट्र के रूप में होगी या धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में बनी रहेगी, यह बहस अभी समाप्त नहीं हुई है।