रूसी बमवर्षक Tu-160 और भारत: क्यों बढ़ी भारत को इसकी जरूरत? यूक्रेन में इसने मचाया था कहर, जानिए इसकी खासियतें
चाहे ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच चल रही तनातनी हो या भारत-चीन सीमा पर जारी विवाद, इन दिनों रणनीतिक रूप से बमवर्षक जेट विमानों की चर्चा जोरों पर है। खासतौर पर अमेरिकी B-2 (US B-2 Spirit Stealth Bomber), रूसी Tu-160 (Russian Tu-160), और चीनी H-6K बाम्बर (China H-6K Bomber) सुर्खियों में हैं। यह चर्चा इसलिए भी है कि भारतीय वायुसेना के रूसी Tu-160 को खरीदने के मामले में चर्चा गरम है। आइए जानते हैं कि युद्ध के दौरान ये बमवर्षक विमान कैसे जंग के समीकरण को बदलने में सक्षम हैं और इनमें क्या खासियतें हैं। साथ ही, यह भी जानें कि दुनिया के कौन से देशों के पास ये बमवर्षक हैं।
स्ट्रैटजिक और टैक्टिकल बाम्बर में अंतर
- बाम्बर या बमवर्षक दो प्रकार के होते हैं: स्ट्रैटजिक और टैक्टिकल। बाम्बर का इस्तेमाल मुख्य रूप से दुश्मन के जमीन और समुद्र पर स्थित टारगेट्स को निशाना बनाने के लिए किया जाता है। यह हवा से जमीन पर बम गिराने या क्रूज मिसाइल लॉन्च करने में सक्षम होते हैं।
- टैक्टिकल बाम्बर आमतौर पर युद्ध के दौरान अपने इलाके में दुश्मन की सेना और ठिकानों को नष्ट करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। यह विमान अपनी थलसेना की मदद के लिए दुश्मन के पास के ठिकानों को निशाना बनाते हैं।
- स्ट्रैटजिक बाम्बर वो विमान होते हैं जो दुश्मन के इलाके में घुसकर हजारों किलोमीटर की दूरी तय करते हैं और फिर क्रूज मिसाइल या परमाणु हथियारों से हमला करते हैं। इन विमानों का इस्तेमाल सीमाओं के पार जाकर दुश्मन के शहरों पर हमला करने में किया जाता है।
- स्ट्रैटजिक बाम्बर की रेंज और क्षमता टैक्टिकल बाम्बर से कहीं अधिक होती है। पहले विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने स्ट्रैटजिक बाम्बर का इस्तेमाल किया था और दूसरे विश्व युद्ध में भी इसका उपयोग किया गया था। अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमले के लिए इनका इस्तेमाल किया था।
भारत-चीन सीमा पर ड्रैगन ने तैनात किया बमवर्षक
चीन ने सबसे पहले 1970 के दशक में सोवियत संघ की मदद से बाम्बर विकसित किया था। उनका शियान H-6 बाम्बर सोवियत Union के Tu-16 बाम्बर का उन्नत संस्करण था। बाद में चीन ने H-6 के कई अपग्रेडेड वर्जन तैयार किए, जिनमें सबसे हालिया H-6K बाम्बर है।
पिछले साल 11 नवंबर को चीन ने अपने सरकारी मीडिया पर H-6K बाम्बर की पहाड़ी के ऊपर उड़ान भरने के फुटेज दिखाए थे, जिसमें दावा किया गया कि इस बाम्बर को हिमालय की दिशा में भेजा गया था।
भारत को क्यों चाहिए Tu-160 बाम्बर?
भारत-चीन सीमा तनाव के बीच चीन ने भारतीय सीमा के पास बाम्बर तैनात किए थे, जिसे देखते हुए भारतीय वायुसेना को भी स्ट्रैटजिक बाम्बर की जरूरत महसूस हुई। इन बाम्बरों के माध्यम से भारत न केवल चीन बल्कि पाकिस्तान को भी कड़ा संदेश दे सकता है। इस संदर्भ में भारत रूस से Tu-160 जैसा घातक बाम्बर खरीदने की तैयारी कर रहा है।
Tu-160, जिसे सफेद हंस कहा जाता है, एक सुपरसोनिक रूसी स्ट्रैटजिक बाम्बर है, जिसे NATO ब्लैक जैक के नाम से जानता है। यह विमान आवाज की गति से दोगुनी रफ्तार (M-2+) से उड़ सकता है, और यह अब तक का सबसे बड़ा और भारी फाइटर विमान है। वर्तमान में, इसका मुकाबला अमेरिका के B-1 स्ट्रैटजिक बाम्बर से किया जा सकता है।
चीन का H-6K और रूस का Tu-160
चीन ने 1970 के दशक में सोवियत संघ की मदद से अपना पहला बाम्बर विकसित किया था। वहीं, भारत ने भी चीन और पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव को देखते हुए इस रणनीतिक बाम्बर को खरीदने की योजना बनाई है। Tu-160 का इस्तेमाल न केवल चीन बल्कि पाकिस्तान को भी भारत की सामरिक ताकत का एहसास कराने में मदद करेगा।
भारत की सैन्य शक्ति में इजाफा करने के लिए Tu-160 जैसे बाम्बर की आवश्यकता महसूस हो रही है, जो युद्ध के दौरान रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। इन बाम्बरों के माध्यम से भारत अपने दुश्मनों को प्रभावी तरीके से चुनौती दे सकता है, और इसका महत्व समय के साथ और बढ़ता जा रहा है।