एडवोकेट संतोष आर. दुबे की जनहित याचिका पर सुनवाई में ऐतिहासिक निर्देश
एनबीडी मुंबई,
महाराष्ट्र के बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुलुंड में नए न्यायालय भवन के निर्माण को लेकर एक अहम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर प्रशासनिक मंजूरी देने और आवश्यक धनराशि आवंटित करने का निर्देश दिया है। यह आदेश एडवोकेट संतोष आर. दुबे द्वारा दायर की गई जनहित याचिका (Writ Petition No. 920 of 2024) पर सुनवाई के दौरान दिया गया।

एड. दुबे ने स्वयं इस याचिका में पक्ष रखते हुए मुलुंड में लंबे समय से न्यायिक आधारभूत संरचना की उपेक्षा और जर्जर भवन को लेकर आवाज़ उठाई थी। उन्होंने कोर्ट को अवगत कराया कि टोपीवाला भवन परिसर में स्थित मौजूदा मुलुंड न्यायालय का निर्माण वर्ष 1945 में हुआ था और अब वह अत्यंत जर्जर अवस्था में है, जिससे न्यायिक कार्यों में बाधा और आम नागरिकों को असुविधा हो रही है।
उन्होंने यह भी बताया कि वर्तमान में मुलुंड न्यायालय में लगभग 24,000 से अधिक मुकदमे लंबित हैं, जबकि मामलों के निपटारे के लिए सिर्फ दो अदालतें संचालित हो रही हैं। न्याय व्यवस्था के नियमानुसार प्रत्येक 600 प्रलंबित मामलों पर एक अदालत की आवश्यकता होती है।
मुख्य न्यायमूर्ति श्री आलोक अराड़े और न्यायमूर्ति श्री संदीप वी. मार्ने की पीठ ने राज्य सरकार को निर्देशित किया है कि हाईकोर्ट द्वारा प्रस्तावित योजना पर विचार करते हुए चार सप्ताह के भीतर धन आवंटन और प्रशासनिक मंजूरी की प्रक्रिया पूर्ण की जाए।
कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि 4356.31 वर्ग मीटर भूमि (CTS नं. 676/A/1 और 663), जिसे मुंबई उपनगर के जिलाधिकारी द्वारा मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, एस्प्लेनेड, मुंबई को दिनांक 5 अप्रैल 2024 को सौंपा जा चुका है, उस पर नए न्यायालय भवन का प्रस्तावित निर्माण किया जाएगा। हाईकोर्ट की बिल्डिंग कमेटी ने इस योजना को पहले ही स्वीकृति दे दी थी और दिनांक 6 मई 2025 को राज्य सरकार को अनुमोदन एवं बजट आवंटन हेतु प्रस्ताव भेजा गया था।
एड. दुबे ने निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि —
“यह फैसला न केवल मुलुंड क्षेत्र के लिए, बल्कि समूची मुंबई न्याय व्यवस्था के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। इससे न्यायिक सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार होगा और आम नागरिकों को शीघ्र न्याय प्राप्त हो सकेगा।”
यह निर्णय मुलुंड में वर्षों से लंबित न्यायिक अधोसंरचना के विकास को गति देगा और क्षेत्रीय अधिवक्ताओं एवं नागरिकों को बेहतर न्यायिक सुविधाएं उपलब्ध कराने में सहायक सिद्ध होगा।