पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में फुरफुरा शरीफ का दौरा किया, जिससे राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। विपक्षी दलों, विशेष रूप से बीजेपी, ने इस यात्रा को ममता बनर्जी की चुनावी रणनीति करार दिया है। 2026 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की नेता मुस्लिम वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रही हैं। यह यात्रा उनके हालिया रुख से मेल खाती है, जैसे राम मंदिर उद्घाटन समारोह का बहिष्कार और प्रयागराज महाकुंभ को ‘मृत्युकुंभ’ कहकर संबोधित करना।
चुनावी रणनीति के संकेत
ममता बनर्जी का यह कदम उनके मुख्य वोट बैंक को संदेश देने की एक सोची-समझी रणनीति माना जा रहा है। फुरफुरा शरीफ दौरे से उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि वे मुस्लिम समुदाय को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहतीं। इससे पहले भी, राम मंदिर के बहिष्कार और महाकुंभ को ‘मृत्युकुंभ’ कहने से यह साफ हुआ था कि उनकी प्राथमिकता क्या है।
विपक्ष का हमला
बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों ने ममता बनर्जी पर तीखा हमला किया है। बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी ने इस यात्रा को ममता बनर्जी का “चुनावी अनुष्ठान” करार दिया, जबकि कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने इसे मुस्लिम वोटों को रिझाने की कोशिश बताया। सीपीएम नेता सुजान चक्रवर्ती का भी यही मानना है कि यह यात्रा सिर्फ आगामी चुनावों से पहले मुस्लिम समुदाय की नब्ज टटोलने के लिए की गई थी।
ममता बनर्जी का जवाब
ममता बनर्जी ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि जब वे काशी विश्वनाथ मंदिर या पुष्कर जाती हैं, तब सवाल क्यों नहीं उठाए जाते? उन्होंने यह भी कहा कि जब वे दुर्गा पूजा, काली पूजा या क्रिसमस समारोह में शामिल होती हैं, तब कोई सवाल क्यों नहीं करता? उन्होंने दावा किया कि यह उनकी पहली फुरफुरा शरीफ यात्रा नहीं है, बल्कि वे पहले भी दर्जनों बार वहां जा चुकी हैं।
2026 के चुनाव की तैयारी
ममता बनर्जी के लिए अगला बड़ा लक्ष्य 2026 का पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव है। 2021 में टीएमसी ने कठिन लड़ाई के बावजूद सत्ता बरकरार रखी थी, और 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को रोकने में कामयाब रही थी। अब उनकी रणनीति यह सुनिश्चित करने की है कि विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला केवल टीएमसी और बीजेपी के बीच हो, जिससे कांग्रेस और लेफ्ट हाशिये पर चले जाएं।
कांग्रेस और लेफ्ट की चुनौती
ममता बनर्जी की योजना बीजेपी के खिलाफ एकमात्र विकल्प बनने की है, लेकिन कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों की मौजूदगी उनके लिए चुनौती बन सकती है। यदि मुस्लिम वोटों में बंटवारा होता है, तो यह रणनीति उलटी भी पड़ सकती है। 2021 में ‘खेला होगा’ का नारा कामयाब रहा था, लेकिन 2026 में हालात कुछ अलग हो सकते हैं।