महाराष्ट्र का मूड बदल रहा है या जस का तस? उद्धव ठाकरे कोरोना महामारी प्रबंधन में सफल रहे या असफल?
महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र, एबीपी न्यूज़ ने महाराष्ट्र के वोटरों से बातचीत की और उद्धव ठाकरे सरकार के कोरोना प्रबंधन पर लोगों की राय जानी। महाराष्ट्र में 20 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसमें एक ही चरण में 288 सीटों पर मतदान होगा। चुनावों के दौरान हर पार्टी अपना घोषणा पत्र जारी करती है जिसमें जनता से कई वादे किए जाते हैं, जिसमें रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा और महिला सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
कोरोना महामारी का समय और उद्धव ठाकरे की सरकार
कोरोना महामारी के दौरान महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी की सरकार थी। उद्धव ठाकरे का कहना है कि उन्होंने इस संकट का प्रभावी ढंग से प्रबंधन किया, लेकिन मुंबई की जनता ने उनके इस दावे को खारिज कर दिया। जनता का मानना है कि ठाकरे सरकार ने कोरोना प्रबंधन में कई स्तर पर घोटाले किए और जनता के भरोसे को ठेस पहुंचाई।
‘डेड बॉडी कवर’ घोटाला
मुंबई के नागरिकों का कहना है कि कोरोना महामारी के समय उद्धव ठाकरे सरकार ने हर एक चीज़ में घोटाले किए। जनता का कहना था, “डेड बॉडी के कवर तक में घोटाला किया गया। कोविड को सही तरीके से संभाला नहीं गया, और यदि किया गया होता तो इतने घोटाले सामने नहीं आते। उनका खिचड़ी घोटाला भी बहुत चर्चित रहा।”
खिचड़ी घोटाले पर जनता की राय
एक स्थानीय नागरिक ने एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए कहा, “उद्धव साहब ने घर से बाहर निकल कर काम नहीं किया। वे कहते हैं कि कोरोना को अच्छे से मैनेज किया, लेकिन यह सब कहने की बात है। खिचड़ी घोटाला भी एक बड़ा मुद्दा बना, जिसमें 300 ग्राम खिचड़ी का वादा किया गया, लेकिन सिर्फ 200 ग्राम ही लोगों तक पहुंची। PPE किट और वैक्सीनेशन के दौरान भी घोटाले किए गए।”
‘फेसबुक से सरकार चलाई’
एक अन्य नागरिक ने कहा, “ढाई साल तक उद्धव ठाकरे फेसबुक से सरकार चलाते रहे। मुख्यमंत्री को जनता के बीच में उतरकर काम करना चाहिए, लेकिन वे घर पर बैठे रहे। जब कोरोना का खौफ हर जगह था, तब वे सिर्फ अपने परिवार की सुरक्षा में लगे रहे।”
‘जनता समझदार है, चुनाव में जवाब देगी’
एक वोटर ने कहा, “जो मुख्यमंत्री ढाई साल तक मंत्रालय नहीं जाता, वह सरकार कैसे चलाएगा? महाराष्ट्र की जनता समझदार है और 2024 के चुनाव में उन्हें जवाब देगी। कोरोना एक ऐसी स्थिति थी जिसमें सहानुभूति की ज़रूरत थी, लेकिन हमारे मुख्यमंत्री गायब थे। ऐसे में जनता का भरोसा टूटना स्वाभाविक था।”