एनबीडी नई दिल्ली,
भारत की राजधानी में स्थित विज्ञान भवन आज एक ऐतिहासिक और भावपूर्ण क्षण का साक्षी बना, जब भारत की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने जगद्गुरु स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी महाराज को 58वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया। यह पुरस्कार उन्हें संस्कृत साहित्य में उनके अद्वितीय, तपःपूत और विलक्षण योगदान के लिए दिया गया है।

स्वामी रामभद्राचार्य जी ने बाल्यकाल में ही अपनी दृष्टि खो दी थी, परंतु जीवन में कभी हार नहीं मानी। आत्मबल, साधना और सेवा के पथ पर अग्रसर होते हुए उन्होंने 22 भाषाओं में 240 से अधिक ग्रंथों की रचना की है, जिनमें महाकाव्य, टीकाएं, भाष्य और स्तोत्र सम्मिलित हैं।
उनका संपूर्ण जीवन भारतीय संस्कृति, सनातन धर्म और ज्ञान परंपरा का मूर्तिमान स्वरूप है। वे न केवल एक संत हैं, बल्कि एक आचार्य, साहित्यकार, दार्शनिक और समाजसेवी भी हैं। उनका कार्य एक व्यक्ति नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारतीय ज्ञान परंपरा का गौरव है।
राष्ट्रपति द्वारा प्रदत्त यह सम्मान न केवल स्वामी जी के लिए, बल्कि समस्त संतसमाज, संस्कृत भाषा, सनातन संस्कृति और भारतीय साहित्य परंपरा का भी सम्मान है।
पूज्यपाद स्वामी रामभद्राचार्य जी को यह पुरस्कार प्राप्त होना भारतवर्ष के लिए गौरव का क्षण है। उनका जीवन वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बना रहेगा।