काठमांडू: नेपाल में राजशाही की बहाली को लेकर चल रहे आंदोलन ने एक नया मोड़ ले लिया है। सिविल सोसायटी के एक्टिविस्ट्स ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर आरोप लगाया है कि वे गद्दी पर वापस आने के लिए भारत के राजनीतिक और धार्मिक कट्टरपंथी तत्वों से समर्थन प्राप्त कर रहे हैं। इस दावे ने नेपाल की राजनीति में हलचल मचा दी है।
सिविल सोसायटी का आरोप नेपाल के कई नागरिक अधिकार संगठनों और सिविल सोसायटी के प्रतिनिधियों ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा कि ज्ञानेंद्र शाह की सक्रियता देश में अराजकता फैलाने के उद्देश्य से की जा रही है, जिससे अवसरवादी ताकतों को लाभ मिल सकता है। उन्होंने यह भी दावा किया कि इस मुहिम को भारत के कुछ रूढ़िवादी तत्वों का समर्थन प्राप्त है।
नेपाली कांग्रेस का बयान नेपाल की प्रमुख राजनीतिक पार्टी नेपाली कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ज्ञानेंद्र शाह संवैधानिक सम्राट बनने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। पार्टी के नेताओं ने कहा कि नेपाल एक लोकतांत्रिक गणराज्य है और इसे राजशाही की ओर वापस नहीं जाना चाहिए।
राजशाही बहाली आंदोलन को जनता का समर्थन? नेपाल में पिछले कुछ समय से राजशाही की वापसी और नेपाल को पुनः हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं। इन आंदोलनों को जनता के एक वर्ग का समर्थन मिल रहा है। हाल ही में जब पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पोखरा प्रवास से काठमांडू लौटे थे, तो एयरपोर्ट पर हजारों की भीड़ ने उनका स्वागत किया। इस दौरान समर्थकों ने ‘नारायणहिटी खाली गर, हाम्रो राजा आउंदै छन’ (नारायणहिटी महल खाली करो, हमारे राजा आ रहे हैं) जैसे नारे लगाए।
सिविल सोसायटी का कड़ा रुख सिविल सोसायटी के आठ प्रमुख सदस्यों ने अपने संयुक्त बयान में कहा, “ज्ञानेंद्र शाह का राजनीतिक सक्रियता में उतरना उनके पूर्वजों द्वारा किए गए राष्ट्र निर्माण प्रयासों को विफल करता है और इससे नेपाल की संप्रभुता को खतरा हो सकता है।” उन्होंने चेतावनी दी कि नेपाल को बाहरी राजनीतिक प्रभावों से बचाना चाहिए।
भारत की भूमिका पर सवाल नेपाल की सिविल सोसायटी के दावों के अनुसार, भारत के कुछ धार्मिक कट्टरपंथी गुट नेपाल में राजशाही की वापसी का समर्थन कर रहे हैं। हालांकि, भारत सरकार की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
आगे की राह नेपाल में यह बहस अब और तेज हो गई है कि क्या देश को गणराज्य बनाए रखना चाहिए या राजशाही को पुनः स्थापित किया जाना चाहिए। आने वाले दिनों में यह मुद्दा और गरमाने की संभावना है, क्योंकि विभिन्न राजनीतिक दल और नागरिक समूह इस पर अपनी राय रख रहे हैं।
काठमांडू: नेपाल में राजशाही की बहाली को लेकर चल रहे आंदोलन ने एक नया मोड़ ले लिया है। सिविल सोसायटी के एक्टिविस्ट्स ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर आरोप लगाया है कि वे गद्दी पर वापस आने के लिए भारत के राजनीतिक और धार्मिक कट्टरपंथी तत्वों से समर्थन प्राप्त कर रहे हैं। इस दावे ने नेपाल की राजनीति में हलचल मचा दी है।
सिविल सोसायटी का आरोप नेपाल के कई नागरिक अधिकार संगठनों और सिविल सोसायटी के प्रतिनिधियों ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा कि ज्ञानेंद्र शाह की सक्रियता देश में अराजकता फैलाने के उद्देश्य से की जा रही है, जिससे अवसरवादी ताकतों को लाभ मिल सकता है। उन्होंने यह भी दावा किया कि इस मुहिम को भारत के कुछ रूढ़िवादी तत्वों का समर्थन प्राप्त है।
नेपाली कांग्रेस का बयान नेपाल की प्रमुख राजनीतिक पार्टी नेपाली कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ज्ञानेंद्र शाह संवैधानिक सम्राट बनने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। पार्टी के नेताओं ने कहा कि नेपाल एक लोकतांत्रिक गणराज्य है और इसे राजशाही की ओर वापस नहीं जाना चाहिए।
राजशाही बहाली आंदोलन को जनता का समर्थन? नेपाल में पिछले कुछ समय से राजशाही की वापसी और नेपाल को पुनः हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं। इन आंदोलनों को जनता के एक वर्ग का समर्थन मिल रहा है। हाल ही में जब पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पोखरा प्रवास से काठमांडू लौटे थे, तो एयरपोर्ट पर हजारों की भीड़ ने उनका स्वागत किया। इस दौरान समर्थकों ने ‘नारायणहिटी खाली गर, हाम्रो राजा आउंदै छन’ (नारायणहिटी महल खाली करो, हमारे राजा आ रहे हैं) जैसे नारे लगाए।
सिविल सोसायटी का कड़ा रुख सिविल सोसायटी के आठ प्रमुख सदस्यों ने अपने संयुक्त बयान में कहा, “ज्ञानेंद्र शाह का राजनीतिक सक्रियता में उतरना उनके पूर्वजों द्वारा किए गए राष्ट्र निर्माण प्रयासों को विफल करता है और इससे नेपाल की संप्रभुता को खतरा हो सकता है।” उन्होंने चेतावनी दी कि नेपाल को बाहरी राजनीतिक प्रभावों से बचाना चाहिए।
भारत की भूमिका पर सवाल नेपाल की सिविल सोसायटी के दावों के अनुसार, भारत के कुछ धार्मिक कट्टरपंथी गुट नेपाल में राजशाही की वापसी का समर्थन कर रहे हैं। हालांकि, भारत सरकार की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
आगे की राह नेपाल में यह बहस अब और तेज हो गई है कि क्या देश को गणराज्य बनाए रखना चाहिए या राजशाही को पुनः स्थापित किया जाना चाहिए। आने वाले दिनों में यह मुद्दा और गरमाने की संभावना है, क्योंकि विभिन्न राजनीतिक दल और नागरिक समूह इस पर अपनी राय रख रहे हैं।