बलूचिस्तान का संघर्ष अब केवल पाकिस्तान की अंदरूनी समस्या नहीं रह गया है, बल्कि इसमें अंतरराष्ट्रीय ताकतों का गहरा दखल हो चुका है। चीन, अफगानिस्तान और बलूच विद्रोहियों की अलग-अलग भूमिकाएं इस मुद्दे को और अधिक जटिल बना रही हैं। पाकिस्तान इसे केवल कानून-व्यवस्था और क्षेत्रीय तनाव का मामला मानकर हल करने की कोशिश करता रहा है, लेकिन यह समस्या स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय के सवाल से जुड़ी है।
बलूचिस्तान की आजादी की लड़ाई
बलूचिस्तान में दशकों से हिंसा और अस्थिरता बनी हुई है क्योंकि यहां के लोग पाकिस्तान के जबरन कब्जे को स्वीकार नहीं करते। 1947 में जब पाकिस्तान बना, तब बलूचिस्तान के कलात राज्य को जबरन पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया। जिन्ना ने अपनी सेना भेजकर कलात के नवाब से विलय पर हस्ताक्षर कराए थे, लेकिन बलोच नेताओं और वहां की जनता ने इसका विरोध किया। तब से लेकर आज तक बलूचिस्तान में आजादी की मांग उठती रही है।
बलूचिस्तान में विद्रोही गुटों और पाकिस्तान के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है। बलोच लिबरेशन आर्मी (BLA), बलोच रिपब्लिकन आर्मी (BRA) और बलोच लिबरेशन फ्रंट (BLF) जैसे विद्रोही गुट पाकिस्तानी सेना और सरकार के खिलाफ हथियार उठाए हुए हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान बलूचिस्तान के संसाधनों का दोहन कर रहा है, जबकि वहां के लोगों को बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल रही हैं।
CPEC: चीन का बढ़ता प्रभाव और बलूच विद्रोहियों का विरोध
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) बलूचिस्तान में संघर्ष की एक बड़ी वजह बन गया है। यह परियोजना चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा है, जो चीन के शिनजियांग प्रांत को ग्वादर बंदरगाह से जोड़ता है। पाकिस्तान इसे आर्थिक विकास की योजना बताता है, लेकिन बलोच विद्रोही इसे अपने क्षेत्र का शोषण मानते हैं।
2011 में बलोच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने मजीद ब्रिगेड नाम से एक आत्मघाती दस्ते का गठन किया, जिसने CPEC और ग्वादर में काम करने वाले चीनी इंजीनियरों और कंपनियों पर कई हमले किए। अप्रैल 2015 में जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग पाकिस्तान दौरे पर आए, तो उन्होंने CPEC परियोजना का ऐलान किया, जिसके तहत चीन ने 60 अरब डॉलर का निवेश किया।
बलूचिस्तान के लोग इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि इसका फायदा सिर्फ चीन और पाकिस्तान की सरकार को हो रहा है। स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा, बल्कि उन्हें जबरन उनके गांवों और जमीन से बेदखल किया जा रहा है। विद्रोही गुटों का कहना है कि पाकिस्तान बलूचिस्तान के संसाधनों को चीन के हवाले कर रहा है और उनके अधिकारों को कुचल रहा है।
अफगानिस्तान की भूमिका: बलूच विद्रोहियों को समर्थन?
बलूचिस्तान के संघर्ष में अफगानिस्तान की भूमिका भी अहम है। अफगानिस्तान की सीमा बलूचिस्तान से लगती है और वहां कई बलोच समुदाय रहते हैं। इतिहास में बलूच और पश्तून समुदायों के बीच गहरे संबंध रहे हैं। जब भी पाकिस्तान बलोच विद्रोहियों पर हमला करता है, तो कई बार वे अफगानिस्तान में शरण लेते हैं।
अफगानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण के बाद पाकिस्तान को उम्मीद थी कि तालिबान बलूच विद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, अफगानिस्तान में रहने वाले कुछ बलोच गुटों को वहां से गुप्त समर्थन भी मिल सकता है।
पाकिस्तान के लिए बढ़ती मुश्किलें
बलूचिस्तान में हिंसा और अस्थिरता पाकिस्तान के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुकी है। वहां बार-बार होने वाले हमलों से पाकिस्तान की सेना और सरकार की साख पर सवाल उठने लगे हैं। दूसरी ओर, CPEC के कारण चीन का दखल भी बढ़ रहा है, जिससे स्थानीय लोग और अधिक आक्रोशित हो रहे हैं।
बलूचिस्तान की स्थिति अब पाकिस्तान के नियंत्रण से बाहर होती जा रही है। अगर पाकिस्तान इस समस्या का हल नहीं निकालता, तो यह आने वाले समय में और बड़ा संकट बन सकता है। बलोच विद्रोहियों का कहना है कि वे अपनी आजादी के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं, जबकि पाकिस्तान सरकार इसे आतंकवाद करार दे रही है।
क्या बलूचिस्तान को स्वतंत्रता मिलेगी?
बलूचिस्तान की आजादी की मांग नई नहीं है, लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय ताकतों के शामिल होने से यह मुद्दा और गंभीर हो गया है। पाकिस्तान बलूचिस्तान को कभी अलग नहीं होने देगा क्योंकि यह क्षेत्र खनिज और गैस संसाधनों से भरपूर है। वहीं, बलोच विद्रोही किसी भी सूरत में अपने संघर्ष को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं।
अगर पाकिस्तान बलूचिस्तान में दमन की नीति जारी रखता है, तो यह विद्रोह और तेज हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बलूचिस्तान का मुद्दा धीरे-धीरे उठने लगा है। अब यह देखना होगा कि आने वाले वर्षों में बलूचिस्तान की स्थिति क्या मोड़ लेती है – क्या यह संघर्ष और बढ़ेगा या कोई राजनीतिक समाधान निकलेगा?