ब्राह्मण समाज पर विवादित बयान देकर फंसे अनुराग कश्यप, माफी मांगने के बाद भी बढ़ता जा रहा विवाद

एनबीडी मुंबई,

बॉलीवुड के मशहूर निर्देशक अनुराग कश्यप एक बार फिर अपने बयानों को लेकर विवादों के केंद्र में हैं। इस बार मामला बेहद संवेदनशील है—ब्राह्मण समाज को लेकर दिए गए उनके एक बयान से देशभर में विरोध की लहर दौड़ गई है। सोशल मीडिया पर जबरदस्त नाराज़गी है और मुंबई पुलिस में उनके खिलाफ शिकायत भी दर्ज हो चुकी है।

मामला प्रतीक गांधी और पत्रलेखा की फिल्म फुले से जुड़ा है। सेंसर बोर्ड द्वारा फिल्म में सुझाए गए कट्स को लेकर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए अनुराग कश्यप ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया। लेकिन उसी पोस्ट पर एक यूज़र को जवाब देते हुए उन्होंने ब्राह्मण समाज को लेकर जो टिप्पणी की, उसने तूल पकड़ लिया।

अनुराग ने लिखा था—“जब सरकार कहती है कि भारत में कास्ट सिस्टम खत्म हो गया है, तो फिर फुले फिल्म से ब्राह्मणों को दिक्कत क्यों हो रही है? जब जाति नहीं तो काहे का ब्राह्मण?”

इस बयान के बाद से सोशल मीडिया पर उन्हें जमकर ट्रोल किया जाने लगा। कई यूज़र्स ने इसे ब्राह्मण समाज का अपमान बताते हुए कानूनी कार्रवाई की मांग की। बीजेपी नेता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने भी उनके खिलाफ FIR की मांग करते हुए विरोध जताया।

विवाद बढ़ता देख अनुराग कश्यप ने इंस्टाग्राम पर माफ़ी भरा एक पोस्ट किया। उन्होंने लिखा—

“ये मेरी माफी है — उस पोस्ट के लिए नहीं, बल्कि उस एक लाइन के लिए, जिसे संदर्भ से काटकर नफरत फैलाई जा रही है। मेरी बेटी, परिवार, दोस्त और सहयोगियों को मिल रही बलात्कार और हत्या की धमकियों से बड़ी कोई बात नहीं है। कही गई बात वापस नहीं लूंगा, लेकिन अगर माफी चाहिए, तो ये लो मेरी माफी।”

आगे उन्होंने ब्राह्मण समाज को संबोधित करते हुए लिखा—

“ब्राह्मण लोग, औरतों को बख़्श दो। इतने तो संस्कार शास्त्रों में भी हैं, सिर्फ मनुवाद में नहीं। आप कौन से ब्राह्मण हो ये तय कर लो, बाकी मेरी तरफ से माफ़ी।”

हालांकि अनुराग ने सफाई दी है कि उनके शब्दों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है, लेकिन माफी के बावजूद मामला शांत होता नजर नहीं आ रहा। सोशल मीडिया पर बहस जारी है और अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विवाद फिल्म इंडस्ट्री और सेंसर बोर्ड के स्तर पर क्या असर डालता है।

अनुराग कश्यप का यह मामला एक बार फिर यह सवाल खड़ा करता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा कहां तक है, और सामाजिक संवेदनशीलता को किन शब्दों में छूना चाहिए।

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