हर कोने में दीपक जलकर जग को ज्योति दिखाए
एनबीडी साहित्य मुंबई,
दीपों के पर्व दीपावली के अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मंजू मंगल प्रभात लोढ़ा ने अपनी हृदयस्पर्शी कविता “हर कोने में दीपक जलकर जग को ज्योति दिखाए” के माध्यम से समाज को प्रकाश, प्रेम और नीति का संदेश दिया है।
यह कविता दीपोत्सव की आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सार्थकता को एक सुंदर काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत करती है। डॉ. लोढ़ा लिखती हैं —
“दीपों का ये त्यौहार पावन, पाप पर पुण्य की जीत,
अधर्म पे धर्म की जय हो, जग में फैले नई प्रीत।”
वे आगे कहती हैं कि छोटा-सा दीपक केवल रोशनी नहीं देता, बल्कि यह प्रेरणा भी देता है कि हम सब अपने भीतर के अंधकार को मिटाएँ —
“छोटा सा दीपक देता संदेश — मैं अंधकार मिटा दूं,
रविंद्रनाथ की वाणी कहे — अंधियारे में भी पूनम बना दूं।”
कविता में धनतेरस से लेकर भाई दूज तक के हर पर्व का आध्यात्मिक अर्थ समाहित है — स्वच्छता, नीति से कमाई, मन की सुंदरता, और पारिवारिक स्नेह की भावना।
“मां लक्ष्मी का स्वागत करें, नीति से कमाए धन,
किसी का दिल दुखा न हो, यही सच्चा पूजन-वचन।”
अंत में डॉ. लोढ़ा का संदेश हर दिल को छू जाता है —
“दीप बनो, न बुझो कभी तुम,
ज्योति बनो संसार की,
प्रेम, नीति, सत्य की राह चलो,
यही है दीपावली संस्कार की।”
उनकी यह कविता केवल पर्व की शुभकामना नहीं, बल्कि समाज में प्रकाश फैलाने का एक संदेश भी है —
अंधकार चाहे बाहर का हो या भीतर का, दीप बनकर उसे मिटाना ही सच्ची दीपावली है।