मराठी से शुरू, गुजराती पर समापन; अवधी-भोजपुरी लोकगीतों ने बाँधा समां
एनबीडी मुंबई,
मुंबई के सांस्कृतिक परिदृश्य में एक ऐतिहासिक अध्याय जुड़ गया, जब ‘बयार मित्र परिवार’ द्वारा आयोजित ‘कजरी बयार’ महोत्सव ने भाषा और लोकसंस्कृति के सुंदर समागम से समरसता का अनोखा संदेश दिया।

महादेव की प्रेरणा से उपजी इस संकल्पना ने पहली बार मराठी गीत से कजरी महोत्सव की शुरुआत की एक ऐसा दृश्य जिसने भावनाओं को भीगी आंखों से स्वागत करने को मजबूर कर दिया। मराठी में भोलेनाथ की वंदना के साथ जैसे ही कार्यक्रम की शुरुआत हुई, पूरा हॉल श्रद्धा से भर उठा। इसके बाद अवधी की पारंपरिक कजरी, चैता, सोहर आदि लोकगीतों ने उपस्थित जनसमूह को गांव की गलियों और सावन की सोंधी मिट्टी की यादों में डुबो दिया।

कार्यक्रम का समापन गुजराती गरबा गीतों से हुआ, जो दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर गया। यह बहुभाषी प्रस्तुति सिर्फ एक सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक संदेश था — “हम हर भाषा से प्रेम करते हैं, हर संस्कृति का सम्मान करते हैं।”
दहिसर पूर्व स्थित क्रिस्टल प्राइड राजश्री हॉल में आयोजित इस भव्य आयोजन में सुप्रसिद्ध गायक-संगीतकार सुरेश शुक्ल और गायिका अंकिता दुबे ने लोकगीतों की परंपरा और महत्व पर प्रकाश डालते हुए हृदयस्पर्शी प्रस्तुतियाँ दीं। साथ ही पूनम विश्वकर्मा और नेहा अभिषेक पांडे ने भी अपनी सुरीली आवाज़ से समां बांध दिया।

कार्यक्रम की एक विशेष झलक थी । माताओं-बहनों के लिए आलता, चूड़ियाँ और झूले की पारंपरिक व्यवस्था। महिलाएं लोकधुनों पर झूले में बैठकर नाचतीं-गातीं नज़र आईं — मानो गांव की चौपाल शहर में उतर आई हो। आलता से रंगे पाँव और चूड़ियों की खनक ने सावन की रिमझिम को और रंगीन बना दिया।
महोत्सव में बड़ी संख्या में गणमान्य अतिथि शामिल हुए जिनमें वरिष्ठ समाजसेवी डॉ. राधेश्याम तिवारी, श्री सिद्धिविनायक ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष आचार्य पवन त्रिपाठी, विधायक संजय उपाध्याय, मुंबई हिंदी पत्रकार संघ के अध्यक्ष आदित्य दुबे, आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली, भाजपा प्रवक्ता उदय प्रताप सिंह, मुंबई भाजपा सचिव प्रमोद मिश्र, रेलवे अधिकारी प्रवीण राय, पूर्व सैन्य अधिकारी एसएन मिश्र, पं. वीरेंद्र मिश्र, डॉ. आरके चौबे, श्रीकांत पांडे, रामकृपाल उपाध्याय, कांग्रेस नेता अभय चौबे, किशोर सिंह, पं. कमलाशंकर मिश्र, सुभाष उपाध्याय, एसएन सिंह और शंभूनाथ मिश्र प्रमुख रहे।
प्रेस जगत से भी पत्रकारों ने विशेष रूप से छुट्टी लेकर, दूरी तय कर और अपनी ड्यूटी से समय निकालकर कार्यक्रम में भाग लिया, जिससे कार्यक्रम की गरिमा और बढ़ गई। ‘बयार कजरी’ न केवल एक सांस्कृतिक आयोजन रहा, बल्कि यह एक भावना थी ,भाषाओं के बीच एकता, लोकसंस्कृति के प्रति सम्मान और सामाजिक सौहार्द का जीवंत उदाहरण।