रूस और यूक्रेन के बीच पिछले तीन साल से जारी युद्ध को रोकने के लिए हाल ही में एक अस्थायी युद्धविराम समझौते (Ceasefire Agreement) का प्रस्ताव तैयार किया गया था। इस प्रस्ताव पर सऊदी अरब में अमेरिका और यूक्रेन के बीच सहमति भी बन गई थी, जिसके बाद अमेरिका ने इसे रूस के समक्ष पेश किया। हालाँकि, राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस प्रस्ताव को स्वीकारने से पहले दो प्रमुख शर्तें रख दी हैं, जिससे युद्धविराम की प्रक्रिया एक बार फिर अनिश्चितता में पड़ गई है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, पुतिन चाहते हैं कि यूक्रेन को नाटो (NATO) की सदस्यता ग्रहण करने से रोका जाए और रूस द्वारा क्रीमिया तथा यूक्रेन के चार अन्य क्षेत्रों पर किए गए कब्जे को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दी जाए। ये वही मांगें हैं जो रूस पहले भी कई बार अमेरिका और नाटो के सामने रख चुका है, लेकिन उन्हें अब तक स्वीकार नहीं किया गया।
जेलेंस्की के सामने बढ़ी मुश्किलें
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की इस स्थिति में क्या कदम उठाएंगे। वह युद्धविराम के पक्ष में हैं, लेकिन पुतिन की शर्तों ने उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। यूक्रेन की सरकार रूस के कब्जे वाले क्षेत्रों को लेकर कोई समझौता करने के मूड में नहीं दिख रही है, जबकि नाटो में शामिल होना उसकी दीर्घकालिक सुरक्षा नीति का अहम हिस्सा है।
इससे पहले, अमेरिका ने 30 दिनों के युद्धविराम का प्रस्ताव रूस को भेजा था, लेकिन पुतिन के उदासीन रुख को देखते हुए पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कड़ी चेतावनी दी थी। व्हाइट हाउस में मीडिया से बात करते हुए ट्रंप ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि रूस युद्धविराम पर सहमत होगा, लेकिन अगर ऐसा नहीं होता तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।
अमेरिका की चेतावनी और रूस पर बढ़ता दबाव
ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया कि यदि रूस ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध जारी रखा तो उसे भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा। अमेरिका और उसके सहयोगी कुछ ऐसे कड़े कदम उठा सकते हैं, जिनसे रूस की अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि उनका मुख्य उद्देश्य शांति स्थापित करना है, लेकिन रूस अगर जंग को और लंबा खींचता है, तो उसे इसके नकारात्मक परिणाम झेलने होंगे।
इससे पहले, सऊदी अरब के जेद्दा में अमेरिका और यूक्रेन के प्रतिनिधियों के बीच 30 दिनों के युद्धविराम पर सहमति बनी थी। इसके बाद अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने बयान दिया कि यह प्रस्ताव रूस को भेजा गया है और अब यह देखना होगा कि पुतिन इस पर सहमति जताते हैं या नहीं।
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी इस मुद्दे पर चर्चा के लिए सऊदी अरब में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मुलाकात की थी। सऊदी अरब लंबे समय से यूक्रेन और रूस के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा है और शांति वार्ता को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। इस मुलाकात का उद्देश्य आगामी वार्ता से पहले रूस पर दबाव बढ़ाना था ताकि वह युद्धविराम समझौते के लिए सहमत हो जाए।
क्या पुतिन की शर्तें मानी जाएंगी?
फिलहाल, यह कहना मुश्किल है कि अमेरिका और यूक्रेन पुतिन की इन शर्तों को मानेंगे या नहीं। नाटो में यूक्रेन की सदस्यता रोकने की मांग सीधे तौर पर अमेरिका और पश्चिमी देशों की नीतियों के खिलाफ जाती है, वहीं रूस द्वारा कब्जाए गए क्षेत्रों को मान्यता देना यूक्रेन की संप्रभुता के लिए एक बड़ा झटका होगा।
अगर पुतिन अपनी जिद पर अड़े रहते हैं और अमेरिका-यूक्रेन उनकी शर्तों को खारिज कर देते हैं, तो युद्ध और लंबा खिंच सकता है। अब सबकी नजरें आने वाले दिनों की कूटनीतिक वार्ताओं पर टिकी हैं, जहां यह तय होगा कि रूस-यूक्रेन युद्धविराम की दिशा में आगे बढ़ेंगे या जंग जारी रहेगी।