मृत्यु भोज को लेकर कृपाशंकर की पहल को आगे बढ़ाने की नितांत आवश्यकता

– चित्रसेन सिंह, उद्योगपति तथा वरिष्ठ समाजसेवी

जौनपुर। समाज में सुधार के लिए शिक्षा, सामाजिक न्याय, जागरूकता, स्वच्छता, और सामूहिक सहभागिता जैसी चीजें आवश्यक होती हैं। सदियों से हमारी परंपरा का अंग रहा मृत्यु भोज अब धीरे-धीरे स्टेटस सैंबल बन चुका है। मात्र 13 ब्राह्मणों को सम्मान के साथ खिलानेवाली तेरही ,अब पूरी तरह से शक्ति प्रदर्शन जैसा बनती जा रही है। इसका सबसे बुरा प्रभाव मध्यवर्गीय और निम्नवर्गीय समाज पर पड़ रहा है। शादी विवाह के भारी खर्च से टूट रहा यह समाज मृत्यु भोज के भारी भरकम दिखावे खर्चे से पस्त होता दिखाई दे रहा है। अनेक लोग कर्ज लेकर या जमीन गिरवी रखकर मृत्यु भोज की परंपरा का निर्वाह करने के लिए मजबूर हैं। मृत आत्मा की शांति के लिए एकादशाह तक का कर्मकांड समझ में आता है परंतु उसके बाद मृत्यु भोज सिर्फ और सिर्फ दिखावा के अतिरिक्त कुछ नहीं। 13 ब्राह्मण या 13 गायों को खिलाकर तेरही की रस्म पूरा किया जा सकता है। प्राचीन काल में जीवन के अंतिम चरण में लोग सन्यास आश्रम के रूप में जंगल में चले जाते थे,ऐसे में उनका उनके परिवार वालों से कोई संपर्क नहीं रहता था। उस समय तो यह प्रथा बिल्कुल नहीं रही होगी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह भोज पूरी तरह से दुख और पीड़ा से जुड़ा हुआ है। ऐसे में सामाजिक जागरूकता ही इसको पूरी तरह से समाप्त कर सकती है। मृत व्यक्ति के सम्मान में मानवीय सहायता के तमाम काम किये जा सकते हैं। कंबल वितरण, अनाज वितरण, सार्वजनिक स्थानों पर बेंच लगाना, वाचनालय खोलना, पुराने मंदिर का जीर्णोधार करना, किसी गरीब आदमी की बेटी की शादी में मदद करना जैसे अनेकों काम किये जा सकते हैं।

महाराष्ट्र के पूर्व गृह राज्यमंत्री तथा जौनपुर लोकसभा के पूर्व प्रत्याशी कृपाशंकर सिंह और उनके परिवार ने एक साहसिक और अनुकरणीय फैसला किया है। पिछले दिनों कृपाशंकर के भतीजे का निधन हो गया था। पूरे परिवार ने निर्णय लिया कि एकादशाह (शुद्धक) कार्यक्रम करने के बाद वे मृत्यु भोज का कार्यक्रम नहीं करेंगे। 13 ब्राह्मणों को पूरे सम्मान के साथ भोजन कराएंगे। उनका आशीर्वाद लेंगे और मृत्यु भोज के बदले गांव के एक सबसे गरीब व्यक्ति का घर बना कर देंगे। देखा जाए तो यह एक क्रांतिकारी फैसला है, जो समाज की दशा और दिशा दोनों में सकारात्मक बदलाव ला सकती है। एक स्वस्थ शुरुआत हो चुकी है। आने वाले दिनों में इसी तरह की सोच के साथ समाज को आगे बढ़ना होगा। इससे सक्षम लोगों का सामाजिक योगदान बढ़ेगा और असक्षम लोगों को बिना किसी सामाजिक दबाव के परंपराओं का पालन करने में आसानी होगी। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानंद ने भारतीय समाज में फैली अशिक्षा, विदेशी गुलामी, विधवाओं पर होने वाले अत्यचार, शोषण, छुआछूत, अत्याचार रोकने, पुनर्विवाह करने, सती प्रथा रोकने जैसी अनेक कुरीतियों को दूर करने पर विशेष बल दिया था। मृत्यु भोज की कुप्रथा को दूर करने के लिए भी हम सभी की जागरूकता आवश्यक है।

Share

Copyright ©2025 Navbharat Darpan .Designed By Mindcraft Infotech

navbharat darpan logo